हर मन्दिर में व्यवस्था, हर व्यवस्था में सनातन दृष्टि
भारत की आत्मा उसके मन्दिरों में बसती है। ये केवल ईंट-पत्थर से बने भवन नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था, संस्कार और सनातन चेतना के जीवंत प्रतीक हैं। किंतु दुख की बात यह है कि अनेक मन्दिर आज भी संगठन, व्यवस्था और दिशा के अभाव में अपने वास्तविक उद्देश्य से भटक रहे हैं। यही वह पृष्ठभूमि है, जिसने “सनातन धर्मस्थल प्रबन्धन परिषद” जैसे प्रयास को जन्म दिया है। एक ऐसा संगठन, जिसका लक्ष्य है “हर मन्दिर में व्यवस्था, हर व्यवस्था में सनातन दृष्टि”।
परिषद का मूल उद्देश्य अत्यन्त सारगर्भित है - जिन मन्दिरों समितियाँ नहीं हैं, वहाँ समिति का गठन; और जहाँ समितियाँ हैं, वहाँ समरसता के साथ मिलकर मन्दिरों को धर्म, संस्कृति, शिक्षा, चिकित्सा और सद्गुणों का केन्द्र बनाना। यह कार्य केवल प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अभियान है। मन्दिर सदैव से केवल पूजा का स्थान नहीं रहे; वे "लोक-शिक्षा, लोक-सेवा और लोक-संस्कार" के केन्द्र रहे हैं। यहाँ शास्त्रों का अध्ययन होता था, लोककलाओं का संरक्षण होता था, समाज की एकता का संदेश दिया जाता था। आज आवश्यकता है कि हम उसी गौरव को पुनः प्रतिष्ठित करें।
मन्दिरों की समितियाँ यदि सुव्यवस्थित, निष्ठावान और दूरदर्शी हों तो वे गाँवों और नगरों की आत्मा बन सकती हैं। एक संगठित मन्दिर समाज में सद्भाव, सेवा और संस्कार का प्रवाह ला सकता है। वहीं, बिना समिति वाले मन्दिर मानो बिना आत्मा के शरीर हैं, जहाँ न संरक्षण है, न उत्तरदायित्व, न ही पारदर्शिता।
सनातन धर्मस्थल प्रबन्धन परिषद का दृष्टिकोण केवल मन्दिर प्रबंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि उसका गंतव्य है 'मन्दिर से समाज, समाज से राष्ट्र और राष्ट्र से विश्व का उत्थान।' जब हर मन्दिर से वेद-मंत्र, रामायण के संदेश, गीता के उपदेश, और दान-सेवा की परम्परा जीवंत होगी, तब भारत न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक नेतृत्व में भी विश्वगुरु के स्थान पर पुनः प्रतिष्ठित होगा।
आज का समय यही पुकार रहा है कि मन्दिर केवल पूजा स्थल नहीं, बल्कि 'संस्कार स्थल' बनें। वहाँ से ईश्वर भक्ति के साथ-साथ मातृभूमि, प्रकृति और मानवता की सेवा का संकल्प लिया जाए। सनातन धर्मस्थल प्रबन्धन परिषद इसी दिशा में वह दीपक है जो अंधकार में भी दिशा दिखाता है। यदि भारत का प्रत्येक मन्दिर अपने भीतर से एक ज्योति प्रज्ज्वलित करे तो ज्ञान, संस्कृति और सद्गुणों के प्रकाश सीमाओं से परे विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा।
सनातन धर्मस्थल प्रबन्धन परिषद केवल संगठन नहीं, बल्कि एक संस्कार आंदोलन है, जो कहता है कि "जब मन्दिर जागेंगे, तभी भारत जागेगा और जब भारत जागेगा, तब विश्व का कल्याण होगा।"
परिषद का मूल उद्देश्य
- मन्दिरों के उत्थान और सौंदर्यीकरण
- गौशाला के संचालन एवं संरक्षण
- चिकित्सालय एवं वेद विद्या केंद्र
- सनातन संस्कारों का प्रचार-प्रसार
Mission, Vision & History of Temple Restoration
Our Sacred Mission
शतहस्त समाहर सहस्रहस्त सं किर।
"Gather wealth with a hundred hands, distribute it with a thousand" - Atharvaveda
हर मन्दिर में व्यवस्था, हर व्यवस्था में सनातन दृष्टि - Our mission is सनातन धर्म का प्रचार, मन्दिर संरक्षण, शिक्षा और सामाजिक सेवा. We are committed to preserving the spiritual essence of Sanatana Dharma and helping families return to their spiritual roots.
- मन्दिरों के उत्थान और सौंदर्यीकरण (Temple Enhancement & Beautification)
- सनातन परम्पराओं एवं संस्कारों को बढ़ावा देना (Promote Sanatan Traditions & Samskaras)
- गौशालाओं के संचालन (Gaushala Management)
- चिकित्सालय एवं वेद विद्या पठन-पाठन (Healthcare & Vedic Education Centers)
- आधुनिक शिक्षा के लिए विद्यालय/महाविद्यालय आरम्भ करना (Modern Educational Institutions)
- समाज से जुड़ने की भावना रखने वाले सभी धर्मनिष्ठ व्यक्तियों को एकत्र करना (Unite All Devoted Hindus)
समस्त हिन्दुत्व निष्ठ एवं सनातन धर्मी व्यक्ति जो इस कार्य हेतु अपना समय निकाल सकें, वे सभी आमंत्रित हैं। शिक्षा, व्यवसाय, जाति का कोई बंधन नहीं है। Through our dedicated efforts, we aim to create temples that serve as centers of spiritual learning, community service, and cultural preservation for future generations.
Our Divine Vision
समानो मन्त्र: समिति: समानी समानं मन: सह चित्तमेषाम्।
समानं मन्त्रमभि मन्त्रये व: समानेन वो हविषा जुहोमि॥
"Let our thoughts be one, our meeting be one, our minds be one. Let us think together and perform our rites with one accord" - Rigveda
We envision temples as centers of "संस्कार स्थल" (places of values), not just worship places. Where devotees seek blessings and commit to serve Mother Earth, nature, and humanity. Where Vedic mantras, Ramayana's messages, Gita's teachings, and service traditions come alive.
- Create a network of organized, transparent temple committees across India and globally
- Establish temples as centers for dharma, culture, education, healthcare, and virtuous living
- Develop gaushalas (cow shelters) and healthcare facilities for community service
- Promote Sanskrit education, Vedic studies, and modern educational institutions
- Support लोक-शिक्षा, लोक-सेवा और लोक-संस्कार (community education, service & values)
- Build bridges between traditional Sanatan wisdom and modern society
- Create sustainable models for temple management with complete transparency
- Foster unity among all Hindus regardless of education, profession, or caste
Our Vision: "जब मन्दिर जागेंगे, तभी भारत जागेगा और जब भारत जागेगा, तब विश्व का कल्याण होगा।" When every temple illuminates with knowledge, culture, and virtues, it will pave the path for universal welfare beyond boundaries.
Our Sacred History
ॐ
संड्गच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे संञ्ञनानां उपासते॥
"Come together, speak together, let your minds unite. Just as deities in ancient times, united in spirit, worshipped together" - Rigveda
भारत की आत्मा उसके मन्दिरों में बसती है। ये केवल ईंट-पत्थर से बने भवन नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था, संस्कार और सनातन चेतना के जीवंत प्रतीक हैं। किंतु दुख की बात यह है कि अनेक मन्दिर आज भी संगठन, व्यवस्था और दिशा के अभाव में अपने वास्तविक उद्देश्य से भटक रहे हैं। यही वह पृष्ठभूमि है, जिसने "सनातन धर्मस्थल प्रबन्धन परिषद" जैसे प्रयास को जन्म दिया है।
परिषद का मूल उद्देश्य अत्यन्त सारगर्भित है - जिन मन्दिरों में समितियाँ नहीं हैं, वहाँ समिति का गठन; और जहाँ समितियाँ हैं, वहाँ समरसता के साथ मिलकर मन्दिरों को धर्म, संस्कृति, शिक्षा, चिकित्सा और सद्गुणों का केन्द्र बनाना। यह कार्य केवल प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अभियान है।
मन्दिर सदैव से केवल पूजा का स्थान नहीं रहे; वे "लोक-शिक्षा, लोक-सेवा और लोक-संस्कार" के केन्द्र रहे हैं। यहाँ शास्त्रों का अध्ययन होता था, लोककलाओं का संरक्षण होता था, समाज की एकता का संदेश दिया जाता था। आज आवश्यकता है कि हम उसी गौरव को पुनः प्रतिष्ठित करें।
परिषद का दृष्टिकोण केवल मन्दिर प्रबंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि उसका गंतव्य है: 'मन्दिर से समाज, समाज से राष्ट्र और राष्ट्र से विश्व का उत्थान।' सनातन धर्मस्थल प्रबन्धन परिषद केवल संगठन नहीं, बल्कि एक संस्कार आंदोलन है जो कहता है कि "जब मन्दिर जागेंगे, तभी भारत जागेगा और जब भारत जागेगा, तब विश्व का कल्याण होगा।"
Founders & Trustees of सनातन धर्मस्थल प्रबन्धन परिषद
गगन शर्मा
अध्यक्ष (Chairman)
धर्मवीर सिंह
महासचिव (General Secretary)
अमित कुमार बरनवाल
कोषाध्यक्ष (Treasurer)
Who Can Join Our Mission?
समस्त हिन्दुत्व निष्ठ एवं सनातन धर्मी व्यक्ति जो इस कार्य हेतु अपना समय निकाल सकें, वे सभी आमंत्रित हैं। शिक्षा, व्यवसाय, जाति का कोई बंधन नहीं है।
All धर्मनिष्ठ, शिक्षित, संवेदनशील, सामाजिक नेतृत्वकर्ता individuals are welcome. Whether you're a professional, academic, social leader, or simply someone passionate about cultural revival—your contribution matters.
- समाज से जुड़ने की भावना रखने वाले सभी (All Socially Engaged Individuals)
- विदेशों में बसे भारतीय (NRIs & Global Indians)
- सांस्कृतिक संगठन (Cultural Organizations)
- राष्ट्रप्रेमी सेवा-भावी व्यक्ति (Patriotic Service-Minded Citizens)
- जो समय, संसाधन या ज्ञान से योगदान देना चाहते हैं (Those Wishing to Contribute with Time, Resources or Knowledge)
What People Say About Our Mission
Our restoration work, transparent management, and Sanskrit education initiatives are consistently appreciated by devotees and volunteers.
